sandhi in hindi | संधि और उसके भेद


संधि के नियम और उसके भेद

         संधि संस्कृत शब्द है । दो शब्द जब एक- दूसरे के पास होते है, तब उच्चारण की सुविधा के लिए पहले शब्द का अन्तिम ओर दूसरे शब्द का प्रारंभिक अक्षर एक दूसरे से मिल जाते हैं । संधि में जब दो अक्षर (वर्ण) मिलते हैं, तब उसकी मिलावट से विकार उत्पन्न होता है । वर्णो की यह विकारजन्य मिलावट संधि है ।

Sandhi in Hindi | संधि के नियम और उसके भेद





       संधि का शाब्दिक अर्थ है- मेल या समझौता। जब दो वर्णों का मिलन अत्यन्त निकटता के कारण होता है तब उनमें कोई-न-कोई परिवर्तन होता है और वही परिवर्तन संधि के नाम से जाना जाता है। पास-पास स्थित पदों के समीप विद्यमान वर्णों के मेल से होने वाले विकार को संधि कहते हैं।

Ø  ध्वनि विकार दो या अधिक वर्णो के पास-पास आने के फल स्वरुप सिद्ध होता है, उसे संधि कहा जाता है ।
पं. कामता प्रसाद गुरु

Ø  जब दो या अधिक वर्ण पास-पास आते हैं, तो कभी-कभी उनमें रुपांतर हो जाता है, इसी रुपान्तर को संधि कहते है ।      किशोरीदास बाजपेयीजी

Ø  दो शब्दों को जोड़ने पर स्वर-व्यंजन में जो परिवर्तन होता है, उसे संस्कृत में संधि कहते है ।

 संधि वही होती है जहाँ ध्वनियो के संयोग के फल स्वरुप ध्वनि में परिवर्तन होता है । हिन्दी व्याकरण में संस्कृत की संधियों और उनके नियमो को भी ग्रहण कर लिया गया है । पहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की पहली ध्वनि आपस में मिलकर जो परिवर्तन लाती हैं उसे संधि कहते हैं। संधि किए गये शब्दों को अलग-अलग करना संधि विच्छेद कहलाता है।


  संधि के भेद :-

वर्णो के आधार पर संधि के तीन भेद है –
(1) स्वर संधि
(2) व्यंजन संधि
(3) विसर्ग संधि

(1)    स्वर संधि

 दो स्वरो के मेल से उत्पन्न विकार अथवा रुप परिवर्तन को स्वर संधि कहते है ।        इसके पाँच भेद है :-

     1)    दीर्घ स्वर संधि

     2)   गुण स्वर संधि

     3)   वृद्धि स्वर संधि

     4)   यण् स्वर संधि

     5)   अयादि स्वर संधि






      1)     दीर्घ स्वर संधि

       नियम : 

दो सवर्ण स्वर मिलकर दीर्ध हो जाते हैं । यदि '','', '', '', '', '' और '' के बाद वे ही ह्रस्व या दीर्ध स्वर आए तो दोनो मिलकर क्रमश: '', '', '', '' हो जाते हैं ।"

    1. अ + अ = आ

दीप + अवली = दीपावली
देश + अभिमान = देशाभिमान
गीत + अंजली = गीतांजली
वृद्ध + अवस्था = वृद्धावस्था
समान + अंतर = समानांतर
कोण + अर्क= कोणार्क
धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
रुप + अंतर = रुपांतर
2. अ + आ = आ
हिम + आलय = हिमालय
देव + आलय = देवालय
पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
सत्य + आग्रह = सत्याग्रह
मित + आहारी = मिताहारी
शाक + आहार = शाकाहार
गोल + आकार = गोलाकार
वात + आवरण = आवरण
जल + आशय = जलाशय
3. आ + अ = आ
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
विद्या + अभ्यास = विद्याभ्यास
तथा + अपी = तथापि
भाषा + अंतर = भाषांतर
4. आ + आ = आ
वार्ता + आलाप = वार्तालाप
दया + आनंद = दयानंद
विद्या + आलय = विद्यालय
5. इ + इ = ई
रवि + इन्द्र = रवीन्द्र
गिरि + इन्द्र= गिरीन्द्र
ज्योति + इन्द्र = ज्योतीन्द्र
अति + इत = अतीत
6. ई + इ = ई
मही + इन्द्र = महीन्द्र
यती + इन्द्र = यतीन्द्र
शशी + ईन्द्र = शशीन्द्र

7. इ + ई = ई
प्रति + ईक्षा = प्रतीक्षा
गिरि + ईश = गिरीश
हरि + ईश = हरीश
कवि + ईश्वर = कवीश्वर
8. ई + ई = ई
रजनी + ईश = रजनीश
सती + ईश = सतीश
नारी + ईश्वर = नारीश्वर
9. उ + उ = ऊ
सु + उक्ति = सूक्ति
भानु + उदय = भानूदय
मंजु + उषा = मंजूषा
10. ऊ + उ = ऊ
वधू + उक्ति = वधूक्ति
भू + उपरि = भूपरि
11. उ + ऊ = ऊ
सिंधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि
लघु + ऊर्मि = लघुर्मि
12. ऊ + ऊ = ऊ
सरयू + ऊर्मि = सरयूर्मि
भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व
13. ऋ + ऋ = ऋ
पितृ + ऋण = पितृण




2) गुण स्वर संधि

नियम :

‘‘यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘इ’ या ‘ई’ आए तो दोनो मिलकर ‘ए', ‘उ’ या ‘ऊ’ आए तो ‘आ’और ‘ऋ’ आए तो ‘अर्’ हो जाते हैं ।’’

1. अ + इ = ए
शुभ + इच्छा = शुभेच्छा
स्व + इच्छा = स्वेच्छा
देव + इन्द्र= देवेन्द्र
नर + इन्द्र + नरेन्द्र
सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र
भारत + इन्दु = भारतेन्दु
2. अ + ई = ए
परम + ईश्वर = परमेश्वर
उप + ईक्षा = उपेक्षा
देव + ईश= देवेश
सर्व + ईक्षण = सर्वेक्षण
3. आ + इ = ए
यथा + इष्ट = यथेष्ट
महा + इन्द्र = महेन्द्र
4. अ + उ = ओ
वीर + उचित = वीरोचित
चन्द्र + उदय= चन्द्रोदय
नव + उदित = नवोदित
ज्ञान + उपदेश = ज्ञानोपदेश
5. अ + ऊ = ओ
जल + ऊर्मि = जलोर्मि
समुद्र + ऊर्मि= समुद्रोर्मि
नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा
6. आ + उ = ओ
महा + उत्सव = महोत्सव
यथा + उचित = यथोचित
वीर + उचित = वीरोचित

7. अ + ऋ = अर्
सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
राज + ऋषि = राजर्षि
देव + ऋषि= देवर्षि
गीष्म + ऋतु = गीष्मर्तु
8. आ + ऋ = अर्
महा + ऋषि = महर्षि



3) वृद्धि स्वर संधि

नियम :
“यदि ‘अ’ या ‘आ’  के बाद ‘ए’ या ‘ऐ’  आए तो दोनो के स्थान में ‘ऐ’ तथा ‘ओ’ या ‘औ’ आए तो दोनो के स्थान पर ‘औ’ हो जाता हैं ।’’


1. अ + ए = ऐ
हित + एषी = हितैषी
एक + एक = एकैक
धन + एषणा = धनैषणा
2. अ + ऐ = ऐ
स्व + ऐच्छिक = स्वैच्छिक
विचार + ऐक्य = विचारैक्य
3. आ + ए = ऐ
सदा + एव = सदैव
वसुधा + एव = वसुधैव
4. आ + ऐ = ऐ
महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
5. अ + ओ = औ
जल + ओध = जलौध
बिंब + ओष्ठ = बिंबौष्ठ
6. अ + औ = औ
वन + औषध = वनौषध
परम + औदार्य = परमौदार्य
7. आ + औ = औ
महा + औषध = महौषध




4) यण स्वर संधि

नियम :
“यदि ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’ और ‘ऋ’ के बाद कोइ भिन्न स्वर आए तो ‘इ’ और ‘ई’ का ‘य’, ‘उ’ और ‘ऊ’ का ‘व’ और ‘ऋ’ का ‘र्’ हो जाता हैं ।’’

  •  यण संधि के तीन प्रकार के संधि युक्त्त पद होते हैं।
  1. ‘य’ से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए।
  2. ‘व्’ से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए।
  3. ‘ऋ’ शब्द में ‘त्र’ होना चाहिए।
1. इ + अ= य
अति + अंत = अत्यंत
वि + अर्थ = व्यर्थ
यदि + अपि= यद्यपि
2. इ + आ= या
नि + आय = न्याय
अति + आवश्यक= अत्यावश्यक
इति + आदि = इत्यादि
अभि + आस = अभ्यास
परी + आवरण = पर्यावरण
3. इ + उ= यु
प्रति + उत्तर = प्रत्युत्तर
अति + उष्ण = अत्युष्ण
अति + उत्तम= अत्युत्तम
4. इ + ऊ= यू
वि + ऊह = व्यूह
प्रति + ऊष = प्रत्यूष
5. उ + अ= व
सु + अच्छ = स्वच्छ
अनु + अय = अन्वय
6. उ + आ= वा
मधु + आचार्य = माध्वाचार्य
सु + आगत = स्वागत
7. उ + ओ= वो
लघु + ओष्ठ = लघ्वोष्ठ
8. ऋ + आ = र् 
पितृ + आदेश = पित्रादेश
मातृ + आदेश = मात्रादेश



5) अयादि संधि

नियम :

“यदि ‘ए’, ‘ऐ’, ‘औ’, ‘औ’ के बाद कोइ स्वर आए तो वह क्रमश: ‘अय’, ‘आय’, ‘अव’, ‘आव’ हो जाता है ।’’

1. ए + अ = अय
ने + अन = नयन
चे + अन = चयन
2. ऐ + अ = आय
गै + अक = गायक
विनै + अक = विनायक
3. ऐ + इ = आयि
नै + इका = नायिका
दै + इनी = दायिनी
4. ओ + अ = अव
गो + अक्ष = गवक्ष
भो + अन = भवन
5. ओ + इ = अव
पो + इत्र = पवित्र
6. औ + अ = आव
पौ + अन = पावन
श्रो + अक = श्रावक
7. औ + इ = आवि
नौ + इक = नाविक

8. औ + उ = आवु
भौ + उक = भावुक



(2) व्यंजन संधि :-

व्यंजन संधि में एक व्यंजन का किसी दूसरे स्वर से अथवा व्यंजन से मेल होने पर दोनो मिलने वाली ध्वनियों में विकार पैदा होता है ।

1) नियम : 1 

 ‘‘यदि ‘क’, ‘च’, ‘ट’, ‘त’, ‘प’ के बाद वर्ग का तृतिय या चतुर्थ वर्ण आए या ‘य’, ‘र’, ‘ल’, ‘व’ या कोई स्वर आए तो ‘क’, ‘च’, ‘ट’, ‘त’, ‘प’ के स्थान में अपने ही वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है । मतलब कि ‘क्’ का ‘ग्’ , ‘च्’ का ‘ज्’ ,‘ट्’ का ‘ड्’ , ‘त्’ का ‘द्’ , और ‘प्’ का ‘ब्’ हो जाता है ।’’

क         :           दिक् + अंत = दिगंत
                        दिक् + गज = दिग्गज
                        दिक् + अम्बर = दिगम्बर
च         :           अच् + अंत = अजन्त
                        पिच् + अन्त = पिजन्त
ट          :           षट् + दर्शन = षडदर्शन
                        षट् + अंग = षडंग
                        षट् + यन्त्र = षड्यन्त्र
त          :           सत् + वाणी = सद्वाणी
                        तत् + उपरान्त = तदुपरान्त
                        जगत् + अम्बा = जगदम्बा
                        जगत् + आनंद =जगदानंद
                        जगत् + नाथ = जगन्नाथ
                        सत् + जन = सज्जन
प          :           अप् + इज = अब्ज

2 ) नियम : 2

यदि , , , ,  के बाद या आए तो अपने वर्ग के पंचम वर्ण में बदल जाते हैं ।

क         :           वाक् + मय = वाङमय
                        वाक् + निपूर्ण = वाङनिपूर्ण
त          :           उत् + नति = उन्नत
                        उत् + मूलन = उन्मूलन
                        सत् + नारी = सन्नारी
                        जगत् + माता =जगन्माता
प          :           अप् + मय = अम्मय

 3) नियम : 3

यदि ‘म्’ के बाद स्पर्श व्यंजन आये तो ‘म’ का अनुस्वार या बादवाले वर्ण के वर्ग का पंचम वर्ण हो जाता है ।
  • म् + क ख ग घ ङ के उदहारण :          

                                सम् + कल्प = संकल्प
शम् + कर = शंकर
अहम् + कार = अहंकार
सम् + ख्या = संख्या
सम् + गम = संगम
  • म् + च, छ, ज, झ, ञ के उदहारण
किम् + चित = किंचित
सम् + चय = संचय
पम् + चम = पंचम
सम् + जीवन = संजीवन
  • म् + ट, ठ, ड, ढ, ण के उदहारण
दम् + ड = दंड
खम् + ड = खंड
  • म् + त, थ, द, ध, न के उदहारण
सम् + तोष = संतोष
किम् + नर = किन्नर
सम् + देह = सन्देह
  • म् + प, फ, ब, भ, म के उदहारण
सम् + पूर्ण = सम्पूर्ण
सम् + भव = सम्भव
सम् + मति = सम्मति
सम् + मान = सम्मान

4) नियम : 4

म् के बाद स्वर आए तो स्वर म में मिल जाता है।
सम् + ईक्षा = समीक्षा
सम् + ऋद्ध = समृद्ध

5) नियम : 5

‘‘यदि ‘त्’ के बाद ‘ग’, ‘घ’, ‘द’, ‘ध’, ‘ब’, ‘भ’, ‘य’, ‘र’, ‘व’ हो या कोइ स्वर आए तो ‘द्’ बन जाता है।                          

                                      तत् + रूप = तद्रूप
                                      सत् + भावना = सद्भावना
                                      सत् + धर्म = सद्धर्म 
                                      सत् + इच्छा =सदिच्छा
                                      जगत् + ईश =जगदीश
                                      भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति 
                                      चित् + आनंद = चिदानंद
                                      सत् + आनंद = सदानंद
                                      तत् + अपि = तदपि

6) नियम : 6

‘त्’, ‘द’ के बाद ‘ल’ रहे तो ‘त’, ‘द’ - ‘ल’ में बदल जाता है । ‘न’ के बाद ‘ल’ आए तो ‘न’ अनुनासिक के साथ ‘ल’ मे बदल जाता है ।


विद्युत् + लेखा = विद्युल्लेखा
उत् + लास = उल्लास
                                तत् + लीन = तल्लीन
                                महान् + लाभ =महांल्लाभ
महान् + लास =महांल्लास

7) नियम : 7

‘त्’ के बाद ‘च्’ या ‘छ्’ होने पर ‘च’, ‘ज्’ या ‘झ्’ होने पर ‘ज्’, ‘ट्’ या ‘ठ्’ होने पर ‘ट्’, ‘ड्’ या ‘ढ्’ होने पर ‘ड्’ और ‘ल’ होने पर ‘ल्’ बन जाता है।

उत् + चारण = उच्चारण
शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र
जगत् + छाया = जगच्छाया
उत् + छिन्न = उच्छिन्न
सत् + जन = सज्जन
जगत् + जननी = जगज्जननी
तत् + टीका =तट्टीका
उत् + डयन = उड्डयन

8) नियम 8

यदि त्, थ्, द्, ध् के बाद श् आये तो त्, थ्, द्, ध् को च् और श् को में बदल दिया जाता है।

उत् + श्वास =उच्छवास
सत् + शास्त्र =सच्छास्त्र
उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट

9) नियम : 9

यदि वर्गो के अन्तिम वर्णो को छोड़कर शेष वर्णो के बाद ‘ह’ आए तो पूर्ववर्ग का चतुर्थ वर्ण हो जाता है और ‘ह’ के पूर्ववाला वर्ग अपने वर्ग का तृतिय वर्ण हो जाता है ।

पद् + हति =पद्धति
उत् + हार =उद्धार
उत् + हरण = उद्धरण
तत् + हित = तद्धित

10) नियम : 10

यदि स्वर के बाद ‘छ्’ वर्ण आ जाए तो ‘छ्’ से पहले ‘च्’ वर्ण बढ़ा दिया जाता है।

स्व + छंद = स्वच्छंद
मातृ + छाया = मातृच्छाया
परि + छेद= परिच्छेद
शाला + छादन= शालाच्छादन
संधि + छेद = संधिच्छेद
अनु + छेद =अनुच्छेद

11) नियम : 11

यदि ‘ऋ’, ‘र्’, ‘ष्’ के बाद ‘न्’ आए तो ‘न्’ का ‘ण्’ हो जाता है। अगर उनके बीच कोइ स्वर या व्यंजन आए तब भी ‘न्’ का ‘ण्’ हो जाता है ।

परि + नाम = परिणाम
प्र + मान = प्रमाण
तृष + ना = तृष्णा
निर् + नय = निर्णय
परि + निति = परिणिति
रम् + अनिय = रमणिय
ऋ + न = ऋण
राम + आयन = रामायण
नार + आयन = नारायण

12) नियम : 12

यदि ‘स्’ से पहले ‘अ’, ‘आ’ के अलावा कोई दूसरा स्वर आ जाए तो ‘स’ को ‘ष’ बना दिया जाता है।

 सु + सुप्त = सुषुप्त
अभि + सिक्त = अभिषिक्त
अभि + सेक = अभिषेक
अनु + संग = अनुषंग
नि + सिद्ध = निषिद्ध
वि + सम + विषम

13) नियम : 13

यदि हर वर्ग के पहले चार व्यंजन के बाद यदि अधोष व्यंजन (क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ, श, ष, स) आए तो अगले व्यंजन के स्थान पर उसके वर्ग का पहला व्यंजन हो जाता है ।

उद् + पत्ति = उत्पत्ति
उद् + कंठा = उत्कंठा
सद् + कर्म = सत्कर्म
विपद् + ति = विपत्ति
शरद् + काल  = शरत्काल

14) नियम : 14

यदि ‘स’ और ‘त’ वर्ग के साथ ‘ष्’ और ‘ट्’ व्यंजन आए तो ‘स्’ का ‘ष’ और ‘त्’ का ‘ट्’ हो जाता है । और यदि ‘स’ और ‘त’ वर्ग के साथ ‘श्’ और ‘च्’ व्यंजन आए तो ‘श्’ का ‘श’ और ‘त्’ का ‘च्’ हो जाता है ।

सत् + चरित्र = सच्चरित्र
उत् + चार = उच्चार
सत् +चित =सच्चित
निस् + चिंत = निश्चिंत
निस् + चल = निश्चल
द्रष् +ता =द्रष्टा

(3) विसर्ग संधि :-




  • विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन मेल से जो विकार होता है, उसे 'विसर्ग संधि' कहते है।
  • विसर्ग ( : ) के साथ जब किसी स्वर अथवा व्यंजन का मेल होता है, तो उसे विसर्ग-संधि कहते हैं।

          संस्कृत में विसर्ग एक विशिष्ट ध्वनि है जो स्वर और व्यंजन से अलग रही है । यह उपर नीचे दो बिन्दुओ (:) द्वारा लिखि जाति है । हिन्दी में संस्कृत के विसर्ग वाले तत्सम शब्दो का प्रयोग होता है और उनका उच्चारण विसर्ग युक्त होता है । जैसे – प्राय:, अत:, प्रात:काल, दु:ख आदि विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के मेल से जो विकार होता है, उसे विसर्ग संन्धि कहते है ।


1) नियम : 1

यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ हो और परे ‘क’, ‘ख’, ‘प’, ‘फ’ में से कोइ वर्ण हो तो विसर्ग ज्यों का त्यों रह जाता है ।

अंतः + करण = अंतःकरण
अंतः + पुर= अंतःपुर
प्रात: + काल = प्रात:काल
पय: + पान = पय:पान

2) नियम : 2

यदि विसर्ग के पहले इकार या उकार आए और विसर्ग के बाद का वर्ण ‘क’, ‘ख’, ‘प’, ‘फ’ हो तो विसर्ग का ‘ष्’ हो जाता है ।

दु: + कर = दुष्कर
नि: + कपट = निष्कपट
नि: + पाप = निष्पाप
नि: + फल = निष्फल

3) नियम : 3

विसर्ग के साथ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर भी श्बन जाता है।

दुः + शासन = दुश्शासन
यशः + शरीर = यशश्शरीर
निः + शुल्क = निश्शुल्क
निः + श्वास = निश्श्वास
चतुः + श्लोकी = चतुश्श्लोकी
निः + शंक = निश्शंक

4) नियम : 4

यदि विसर्ग के बाद ‘च’, ‘छ’ हो तो विसर्ग का ‘श्’, ‘ट’-‘ठ’ हो तो ‘ष्’ और ‘त’-‘थ’-‘स’ हो तो ‘स्’ हो जाता है ।

च – छ             à         तप: + चर्या = तपश्चर्या
            निः + चय=निश्चय
            निः + छल =निश्छल
            हरिः + चन्द्र = हरिश्चंद्र
ट – ठ               à       धनु: + टंकार = धनुष्टंकार
            चतुः + टीका = चतुष्टीका
त – थ-स           à       नम: + ते = नमस्ते
            निः + तार =निस्तार
 निः + सार =निस्सार
 नि: + स्वार्थ = निस्स्वार्थ
 बहि: + थल = बहिस्थल

5) नियम : 5

यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ और ‘आ’ को छोड़कर कोई दूसरा स्वर आए और विसर्ग के बाद कोई स्वर हो या किसी वर्ग का तृतिय, चतुर्थ या पंचम वर्ण हो या ‘र’, ‘ल’, ‘व’, ‘ह’ हो तो विसर्ग के स्थान में ‘र्’ हो जाता है ।

निः + आहार = निराहार
निः + आशा = निराशा
दुः + आत्मा =दुरात्मा
नि: + उपाय = निरुपाय
नि: + गुण = निर्गुण
नि: + झर = निर्झर
नि: + जल = निर्जल
नि: + धन = निर्धन
दु: + गन्ध = दुर्गन्ध
निः + विकार =निर्विकार
निः + मल =निर्मल

6) नियम : 6

यदि विसर्ग के पहले ‘इ’, ‘उ’ हो और इसके बाद ‘र’ आए तो ‘इ’ – ‘उ’ का ‘ई’ – ‘ऊ’ हो जाता है और विसर्ग लुप्त हो जाता है ।

नि: + रोग = नीरोग
नि: + रस = नीरस
नि: + रव = नीरव
दु: + राज = दूराज
नीरज = नि: + रज
नि: + रन्द्र = नीरन्द्र
चक्षु: + रोग = चक्षूरोग
दु: + रम्य = दूरम्य

7) नियम : 7

विसर्ग के पहले ‘अ’ हो और उसके बाद वर्ग का तृतिय, चतुर्थ या पंचम वर्ण आए या ‘य’, ‘र’, ‘ल’, ‘व’, ‘ह’ रहे तो विसर्ग का ‘उ’ हो जाता है और यह ‘उ’ पूर्ववर्ती ‘अ’ से मिलकर गुणसंधि द्वारा ओ हो जाता है ।

मन: + योग = मनोयोग
मन: + विकार = मनोविकार
मन: + भाव = मनोभाव
मन: + रथ = मनोरथ
वय: + वृद्ध = वयोवृद्ध
सर: + वर = सरोवर
सर: + ज = सरोज
पय: + द = पयोद
पयः + धर =पयोधर
यश: + दा = यशोदा
यश: + धरा = यशोधारा
मन: + हर = मनोहर
तेज: + मय = तेजोमय
पुरः + हित =पुरोहित

8) नियम : 8

विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ ‘अ’ के अतिरिक्त अन्य किसी स्वर के मेल पर विसर्ग का लोप हो जायेगा तथा अन्य कोई परिवर्तन नहीं होगा।

अत: + एव = अतएव
तत: + एव = ततएव
मन: + उच्छेद = मनउच्छेद
पय: + आदि = पयआदि



  • विसर्ग संधि के अपवाद

भा: + कर = भास्कर
श्रेय: + कर = श्रेयस्कर
नम: + कार = नमस्कार
तिर: + कार = तिरस्कार
पुर: + कार = पुरस्कार
पुर: + कृत = पुरस्कृत
बृह: + पति = बृहस्पति
            निः + कलंक = निष्कलंक
निः + फल = निष्फल
चतुः + पाद = चतुष्पाद
पुन: + अवलोकन = पुनरवलोकन
पुन: + ईक्षण = पुनरीक्षण
पुन: + उद्धार = पुनरुद्धार
पुन: + निर्माण = पुनर्निर्माण
अन्त: + द्वन्द्व = अन्तर्द्वन्द्व
अन्त: + देशीय = अन्तर्देशीय
अन्त: + यामी = अन्तर्यामी


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